एक दिन सुबह-सुबह उठा तो दरवाजे पर दस्तक हुई। मैं समझ गया। दरवाजा खोला, देखा बसंत ही था। 'तुम फिर आ गए,' मैंने गुस्से में पूछा। 'क्या करूं, समय ही नहीं मिलता। साल भर से तैयारी करता हूं। तब जाकर आ पाता हूं,' वह हांफते हुए बोला।
↧